डिएगो माराडोना – एक महानतम खिलाडी अर्श से फ़र्श तक।
डिएगो माराडोना - एक महानतम खिलाडी अर्श से फ़र्श तक।
डिएगो माराडोना दुनिया के महानतम फुटबॉलर में से एक थे।
आइए जानें माराडोना की सफलता की कहानी।कैसे वह कामयाबी के आसमान तक पहुँचे और कैसे अपनी ग़लतियों के कारण अर्श से फ़र्श तक पहुँचे।
डिएगो माराडोना का परिवार
डिएगो अरमांडो माराडोना का जन्म 30 अक्टूबर , 1960 को अर्जेंटीना के प्रांत ब्यूनस आयर्स में हुआ। उनकी माता का नाम डालमा साल्वाडोरा फ़्रेंको था। उनके पिता डॉन डिएगो थे।वह आठ भाई बहनों में पाँचवे नम्बर पर थे।
माराडोना ने 7 नवम्बर 1984 को लम्बे समय से प्रेमिका रही क़लौडिया विलाफ़ेन से शादी की और उनकी दो संताने हुई।
डिएगो माराडोना का बचपन
माराडोना का बचपन ग़रीबी में बीता जैसे अक्सर हर महान व्यक्ति का बचपन ग़रीबी में ही बीतता है।उनका परिवार शहर के सबसे गरीब परिवारों में से एक था। उनके पिता एक कारख़ाने में काम करते थे और उनके ऊपर पाँच लड़कियों और तीन लड़कों की परवरिस का भार था। माराडोना के पिता ने अपने बेटे की कामयाब करने के लिए बहुत बलिदान दिए और वह अंतहीन औत अथक रूप से कारख़ाने में काम करते थे।
माराडोना के पिता उनके जूते चमकाते थे।वह चाहते थे की उनका बेटा पेले से आगे निकल जाए।
माराडोना की माँ ने भी उनके बेहतर जीवन के लिए कई कुर्बनियाँ दी।उनके कैरियर के हर चरण में उनकी माँ उनके साथ थी। वह अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे। माराडोना के नशे की आदत के लिए भी उनकी माँ ने लम्बी और गम्भीर लड़ाई लड़ी।
डिएगो माराडोना की फ़ुट्बॉल में शुरुआत

एक बार माराडोना के चचेरे भाई बेटो ज़राटे ने उनके तीसरे जन्मदिन पर उनको एक फ़ुट्बॉल उपहार में दी तो माराडोना का पहली बार फ़ुट्बॉल से वास्ता पड़ा।यही वह क्षण था जब एक महान खिलाड़ी के जन्म की नींव पड़ी।
फुटबॉल को गिफ्ट में देना आज भी वहां की परंपरा का हिस्सा है। नन्हा डिएगो गिफ़्ट में मिले इस फुटबॉल से खेलने में ही जुटा रहता था।
माराडोना 6 महीनो तक फ़ुट्बॉल को अपनी शर्ट में छुपा कर सोता था की कहीं यह चोरी ना हो जाए।कई बार उनकी माँ ने फ़ुट्बॉल की उनसे छिन भी लिया था क्योंकि उनकी माँ चाहती थी कि वह एक अकाउंटैंट बनें।
छोटी से उम्र में फ़ुट्बॉल के सम्पर्क में आने का परिणाम यह हुआ की वह नौ वर्ष की आयु तक फ़ुट्बॉल खेलना सीख चुके थे ।
सबसे पहले वह अपने ही गाँव की फ़ुट्बॉल टीम “लिटल ओनियन” में शामिल हुए।
बचपन से ही बेहतरीन फुट वर्क, सटीक पास देने की क्षमता और शानदार ड्रीबलिंग ऐक्शन के अभ्यास की वजह से वह जल्दी ही रैंक में ऊपर आ गए।
डिएगो माराडोना की पेशेवर कैरियर की शुरुआत
“लिटल ओनियन” के साथ खेलते खेलते माराडोना बदल चुके थे। उनके खेल में निखार आ गया था।इसी की बदोलत उन्हें 12 वर्ष की उम्र में “लॉस सेबोलिटास” के लिए खेलने की लिए चुना गया था। 15 वर्ष की उम्र में अर्जेंटीना की जूनियर्स टीम “अर्जेंटीनोसा जूनियर्स” में शामिल होकर उन्होंने अपने पेशेवर कैरियर की शुरुआत की।
अपनी विलक्षण क्षमता और प्रतिभा के बल पर आगे चलकर उन्होंने “लॉस सेबोलिटास” का नेतृत्व किया।
माराडोना ने अर्जेंटीना के कई क्लबों का भी सफलता पूर्वक नेतृत्व किया।
डिएगो माराडोना के कैरियर का शिखर | 1986 का फ़ुट्बॉल विश्व कप

माराडोना ने जब वर्ष 1986 में अर्जेंटीना की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा और कप्तान होते हुए फुटबॉल वर्ल्ड कप जिताया था ।वही वह क्षण था जब वह और एक बड़ी जीत हासिल की अपने कैरियर का शिखर पर थे।
सभी जानते हैं की डिएगो मैराडोना महान फुटबॉलर थे। माराडोना ने वर्ष 1976 में फुटबॉल की दुनिया में कदम रखा था और ठीक दस साल बाद वर्ष 1986 में उन्होंने अर्जेंटीना को फुटबॉल वर्ल्ड कप जितवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। इसी मैच में उन्होंने खेल के इतिहास के दो यादगार गोल भी किए।
यही मैच माराडोना के जीवन का सबसे प्रसिद्ध मैच था ।जो मैक्सिको सिटी के उस समय के बेहतरीन स्टेडियम एस्टेडियो एजटेका में इंग्लैंड के विरुद्ध खेला गया था और यह मुक़ाबला विश्व कप 1986 का क्वार्टर फाइनल मुकाबला था।
डिएगो माराडोना का विवादास्पद 'हैंड ऑफ गॉड'
विश्व कप 1986 की वह घटना भुलाए नही भूली जाती जब डिएगो माराडोना ने हाथ की मदद से गोल किया था। बाद में उन्होंने इसे ‘हैंड ऑफ गॉड’ यानी ईश्वर का हाथ की संज्ञा दी थी। माराडोना ने यह गोल इंग्लैड के विरुद्ध मैच में किया था। माराडोना मैक्सिको में खेले गए विश्व कप 1986 में अर्जेंटीना के कप्तान थे।
उन्होंने एक विवादित गोल से इंग्लैंड को जीत से दूर कर दिया था। गेंद उनके कंधे के नीचे बाजू से लगकर गोल पोस्ट में चली गई थी। रेफ़री ने इसे गोल करार दे दिया गया। माराडोना के हाथ से लगकर गोल हुआ था लेकिन रेफरी वो देख नहीं पाए और नजीतन अर्जेंटीना वर्ल्ड चैंपियन बन गया था।यही वह गोल है जो फुटबॉल इतिहास में ‘हैंड ऑफ गॉड‘ के नाम से मशहूर है।

उस विश्व कप में माराडोना के की वजह से ही अर्जेंटीना दूसरी बार चैम्पियन बना था।फाइनल में अर्जेंटीना ने 3-2 से वेस्ट जर्मनी को हराकर दूसरी बार इस ट्रॉफी को हासिल किया था।
आइए थोड़ा और विस्तार से जानें इस ‘हैंड ऑफ गॉड’ वाले गोल को:
पहले हाफ तक बिना किसी गोल के रहने के बाद माराडोना ने 51वें मिनट में हेडर से गोल कर दिया।क्या ऐसा हुआ था?
इंग्लैंड के एक डिफेंडर की गलती की वजह से गेंद नेट की तरफ हवा में उछली, गोल ना होने देने के लिए उस समय के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपरों में से एक पीटर शिल्टन तेजी से दौड़े। माराडोना अपनी फुर्ती से पीटर शिल्टन को छकाने में सफल रहे और अब वीडियो रीप्ले से पता चलता है कि उन्होंने अपने सिर के करीब से अपने बाएं हाथ के मुक्के से गेंद को गोल में पहुंचाया था।
जहाँ देखो वंहा गोल का जश्न था। इंग्लैंड के खिलाड़ियों और मैनेजर के लिए तो यह तमाशा भर था। सरेआम नियमों को तोड़ा गया था।अर्जेंटीना के लिए माराडोना ने यह काम किया था।
गोल स्वीकार कर लिया गया और अर्जेंटीना ने 1-0 की बढ़त बनाई।
अगर मैच इसी गोल की वजह से 1-0 के स्कोर पर खत्म हो जाता तो अर्जेंटीना के साथ साथ दुनियाभर में माराडोना की छवि हमेशा के लिए दागदार हो जाती।
लेकिन इसके बाद आया वह क्षण जब माराडोना ने अपनी उत्कृष्टता और फुर्ती से इंग्लैंड के लगभग आधे खिलाड़ियों को चकमा देते हुए गोल दाग दिया। जिसे देखकर स्टेडियम में उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए थे। इस गोल को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल था।
‘हैंड ऑफ गॉड’ वाले गोल के बारे में जब उस समय के ट्यूनिशियाई रेफ़री अली बन नासिर से पूछा गया की आपने ऐसा क्यों किया?
तब उन्होंने कहा की “इस फ़ैसले को लेने से पहले मैंने लाईनसमैन ड़ौसेव की तरफ़ देखा और ड़ौसेव के संकेत की इंतज़ार कर रहा था कि वास्तव में क्या हुआ। लेकिन डौसेव ने हैंडबाल के लिए संकेत नही दिया”।
बाद में डौसेव ने इस घटना के बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि “ मुझे तुरंत ही अहसास हुआ था की कुछ ग़लत हुआ है।लेकिन उस समय फ़ीफ़ा ने सहायकों को रेफ़री के साथ चर्चा करने की अनुमति नही दे रखी थी। अगर फ़ीफ़ा ने इतने महत्वपूर्ण मैच के लिए यूरोप के रेफ़री को लगा दिया होता तो माराडोना को यह गोल नही मिल पाता”।
डिएगो माराडोना पर ऐसे हुई पैसों की बारिश
नामी क्लब “बोका जूनियर्स” ने 10 लाख पाउंड की मोटी रक़म देकर उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। धुआंधार प्रदर्शन की वजह से माराडोना को अगले ही साल अर्जेंटीना की फुटबॉल टीम में चुना गया।
वर्ष 1982 में उन्हें पहला वर्ल्ड कप खेलने का मौका मिला। माराडोना ने पांच मैचों में दो गोल किए और उनकी टीम सेमीफाइनल तक पहुंची। उसी वर्ल्ड कप में माराडोना को यह विश्वास हो गया था कि उनकी टीम में भी चैंपियन बनने का मादा है।
साल 1986 का वर्ल्ड कप पूरी तरह से माराडोना ने अपने नाम कर लिया।टीम के कप्तान रहते हुए उन्होंने अकेले दम पर अर्जेंटीना को पहली बार चैंपियन बनाया। इसी टूर्नामेंट में उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का गोल्डन बॉल अवॉर्ड भी मिला। इस मैच के बाद पूरी दुनिया में ‘डिएगो-डिएगो‘ का नाम गूंज उठा। माराडोना उस समय के सबसे लोकप्रिय शख़्सियत बन गए।
डिएगो माराडोना के करियर का सफ़र
महान फुटबॉलरों का कोई भी किस्सा हो वह अपने समय के सबसे बड़े ‘शोमैन‘ डिएगो माराडोना के नाम के बिना पूरा नहीं होता है।
माराडोन का फुटबॉल करियर बेहद ही शानदार रहा। उन्होंने खिलाड़ी से लेकर कोच तक का सफर तय किया।
माराडोना साल 1977 से लेकर साल 1994 तक अर्जेंटीना फ़ुट्बॉल की टीम के मेम्बर रहे। इस दौरान उन्होंने 91 मैच खेले और 34 गोल भी किए।
इस महान खिलाड़ी ने फुटबॉल के 4 वर्ल्ड कप खेले। उन्होंने अपना पहला वर्ल्ड कप साल 1982 में खेला। इसके अलावा माराडोना ने साल 1986, 1990 और साल 1994 का वर्ल्ड कप खेला।
वह साल 2008 से साल 2010 तक अर्जेंटीना की टीम के कोच रहे। 2010 विश्व कप के बाद मारोडना ने कोच का पद छोड़ दिया था, क्योंकि अर्जेंटीना को क्वार्टरफाइनल में जर्मनी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
FIFA प्लेयर ऑफ दी सेंचुरी पुरस्कार के लिए इंटरनेट वोटिंग में माराडोना को पहला स्थान मिला था और उन्होंने इस पुरस्कार में पेले के साथ साझेदारी की थी।
इस बेहतरीन खिलाड़ी की लोकप्रियता का पता इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में उनकी नौ फीट ऊंची प्रतिमा लगी है। डिएगो माराडोना के 58वें जन्मदिन के मौक़े पर उनकी कांसे की प्रतिमा का अनावरण साल 2018 में किया था।
इस प्रतिमा में 20वीं शताब्दी का सर्वश्रेष्ठ गोल जो इंग्लैंड के खिलाफ उन्होंने दागा था वह गोल दर्शाया गया है। सभी की नजरें अर्जेंटीना के इस 10 नंबर के खिलाड़ी माराडोना पर ही टिकी होती थी।
डिएगो माराडोना ने ‘हैंड ऑफ गॉड’ से विश्व को कोरोना महामारी से छुटकारा दिलाने की प्रार्थनकी
अर्जेंटीना के अपने समय के महान फुटबॉलर डिएगो माराडोना ने ‘हैंड ऑफ गॉड’ से विश्व को कोरोना महामारी से छुटकारा दिलाने के लिए प्रार्थना भी की ताकि सारा संसार फिर से सामान्य जिंदगी जी पाए।
इस महानतम खिलाड़ी ने माराडोना ने विश्व कप की घटना का जिक्र किया, जब उन्होंने एक अदृश्य हाथ की सहायता से गोल किया था। बाद में इसे ‘हैंड ऑफ गॉड’ यानी ईश्वर का हाथ कहा गया था।
माराडोना ने इंग्लैंड के खिलाफ किए गए विवादास्पद गोल का हवाला देते हुए कोरोना महामारी के विषय में यह कहा था कि, ‘आज हमारे साथ इस महामारी का यह प्रकोप हुआ है और कई लोग कह रहे हैं कि यह ईश्वर का नया हाथ है।(न्यू हैंड ऑफ गॉड)। लेकिन आज मैं इस हाथ से इस महामारी को समाप्त करने के लिए कह रहा हूँ ताकि लोग फिर से स्वस्थ और खुशियों से भरी जिंदगी की तरफ़ लौट सकें’।
माराडोना का टैटू प्रेम
माराडोना ने अपने शरीर पर पाँच टैटू बनवाए थे। जिनमे दो टैटू उनकी दोनो बेटियों “जियानिया और दलमा” के नाम से थे।उन्होंने अपने बायें पैर पर ड्रेगन टैटू बनवाया।
अपने दाँये हाथ पर उन्होंने अर्जेंटीना के मार्क्सवादी प्रसिद्ध क्रांतिकारी “चे ग्वेरा” का टैटू बनवाया था और माराडोना अक्सर “चे ग्वेरा” के विषय में कहते थे की “ मैं उनको अपनी बाँह पर और अपने दिल में रखता हूँ।मैंने उनकी कहानी से प्यार करना सीखा। मुझे लगता है की मैं उनकी सच्चाई की जानता हूँ।”
उनके बायें पैर पर एक पोट्रेट टैटू “फ़िदेल कास्त्रो” क्यूबा के पूर्व प्रधान मंत्री का भी है। वह “फ़िदेल कास्त्रो” के बारे में कहते थे की “ उनसे मिलना मानो मेरे लिए अपने हाथों से आसमान छूने जैसा था।उन्होंने मेरे लिए जो किया मैं उसका वर्णन नही कर सकता।अगर मैं जीवित हूँ तो उसके दो ही कारण हैं, एक तो भगवान और दूसरा “फ़िदेल कास्त्रो” ।
चर्च ओफ़ माराडोना
आजकल हम भारत जैसे देश में कुछ खिलाड़ियों के मंदिर भी देखते हैं और लोग खिलाड़ियों को भगवान तक का दर्जा दे रहे हैं।
ब्यूनस आयर्स में माराडोना की प्रशंसकों ने साल 1998 में “चर्च ओफ़ माराडोना” की शुरुआत की। इस चर्च में अनुयायी माराडोना की सच में पूजा करते हैं और उनके नाम पर प्रार्थना तक बनाई गई है।
माराडोना का फ़ुट्बॉल से सन्यास और पतन की कहानी

माराडोना वह शख़्स था जो अपने करिश्माई खेल के साथ साथ मैदान के बाहर भी चर्चित रहा। डिएगो माराडोना का पीछा विवादों ने कभी नही छोड़ा। विवाद तो जैसे साए की तरह उनके पीछे रहे।
उनको साल 1980 में कोकीन की लत लगी और पकड़े जाने पर पंद्रह महीने के लिए बैन हुए। साल 1991 में माराडोना पर प्रतिबंधित दवा लेने की वजह से डोप का आरोप लगा। एफेड्रिन लेने पर उनको साल 1994 में वर्ल्ड कप में निलंबन भी झेलना पड़ा।
साल 1997 में अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर उन्होंने पेशेवर फ़ुट्बॉल से सन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। क्योंकि बढ़ती शारीरिक चोटों और जीवन के कड़े संघर्ष ने उनके कौशल को कम कर दिया था।
उनके सन्यास के बाद भी समस्याओं ने उनका पीछा नही छोड़ा और वह नशे की गिरफ़्त में चले गए। उन्होंने नशे की दलदल से बाहर निकलने का भरपूर प्रयास किया पर वो सफल ना हो सके।
उन्होंने साल 1996 में कहा था कि “मैं एक ड्रग एडिक्ट था, ड्रग एडिक्ट हूँ और ड्रग एडिक्ट रहूँगा।एक व्यक्ति जो ड्रग का आदि हो जाता है उसे इस से हर दिन लड़ना पड़ता है”।
उनकी नशीली दवा और शराब की आदत बेक़ाबू हो चली थी। उनको साल 2000 और 2004 में दिल की समस्या की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
अपनी इन्ही आदतों की वजह से उनका वजन 267 पाउंड तक बढ़ गया। कुछ लोगों ने उनके मोटापे को देखते हुए “बेली ओफ़ दी ओल्ड मैन” की संज्ञा दे दी।
साल 2005 में “गैसट्रिक बाय पास सर्जरी” के द्वारा उन्होंने अपना 50 किलो वजन कम किया।
सर्जरी के बाद उन्होंने नियमो का पालन नही किया और आहार लेने में लापरवाही के चलते फिर से वजन बढ़ा लिया।
साल 2009 में अमीरी की हदों को छूने वाला यह महानतम खिलाड़ी अपनी ग़लत आदतों के चलते बहुत बड़े क़र्ज़ में डूब गया।
डिएगो माराडोना की मृत्यु

फुटबॉल जगत के महानतम खिलाड़ी डिएगो माराडोना की मौत ने खेल जगत के हर शख़्स को चौंका दिया था।
इस महानतम खिलाड़ी ने सफलता की चकाचौंध से लेकर निलम्बन , नशे और क़र्ज़ की मार को झेला और आख़िर में बीमारियों की गिरफ़्त में रहते हुए जीवन के 60 वें साल में इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह गए।
बुधवार 25 नवंबर 2020, को दिल का दौरा पड़ने की वजह से महानतम फ़ुट्बॉलर डिएगो माराडोना आख़िर ज़िंदगी की जंग हार गए।
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